बाँध के सर पे कफन सामने आना होगा
दुश्मने- अम्न को जेसे हो मिटाना होगा
दिल में पैदा तो करो, अज़्मे-मोसम्मम पहले
देखना फिर इन्हीं कदमों में ज़माना होगा,
शहरे-काशी में भी बारूद बिछाते हैं जो
सफ-ए-हस्ती से हमें उनको मिटाना होगा,
बेगुनाहों का लहू आज भी देता है सदा
मेरे कातिल को सरे-दार चढ़ाना होगा,
शोल-ए-बर्क-ए-सितम छू भी ना पाये जिसको
आशिर्याँ ऐसा हमें मिल के बनाना होगा,
एक हम कल भी थे ओर आज भी हैं एक “उमेश’
सारी दुनिया को ये पैग़ाम सुनाना होगा।
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